अष्ट चिरंजीवी इनसे मौत ने भी खाई मात


2010-12-05 05:03:11 (UTC)

अष्ट चिरंजीवी इनसे मौत ने भी खाई मात

सांसारिक जीवन का अटल सत्य है कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है। इसी कारण
धार्मिक दृष्टि से इस संसार को मृत्युलोक भी कहा गया है। किंतु इस सच के विपरीत इसी
संसार में ऐसे भी देहधारी है, जो युगों के बदलाव के बाद भी हजारों वर्षों से जीवित हैं।
यह बात अविश्वसनीय है और अचंभित करने वाली भी। लेकिन हिन्दू धर्मशास्त्र ऐसे ही अमर
आत्माओं के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
धर्म की भाषा में इन महान और अमर आत्माओं को चिरंजीवी बताया गया है। इनकी संख्या
आठ होने से यह अष्ट चिरंजीवी भी कहलाते हैं। पौराणिक और शास्त्रोक्त प्रसंग सिद्ध करते
हैं कि इन अष्ट चिरंजीवियों ने अपने अद्भुत तपोबल, देव भक्ति और पुरूषार्थ से अमरत्व को
प्राप्त किया। इनके आगे मौत भी नतमस्तक हो गई।
जानते हैं ऐसी ही आठ कालविजयी आत्माओं के बारे में -

♨️ऋषि मार्कण्डेय : भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि
मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए। यह युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।

♨️वेद-व्यास : सनातन धर्म के प्राचीन चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का
सम्पादन एवं पुराणों के रचनाकार ऋषि वेदव्यास ही हैं।

♨️परशुराम : जगत पालक भगवान विष्णु के दशावतारों में एक। जिनके द्वारा पृथ्वी से अठारह
बार निरकुंश क्षत्रियों का अंत किया गया।

♨️राजा बलि : भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के
रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने इनका
द्वारपाल बनना स्वीकार किया।

♨️श्री हनुमान : श्री हनुमान भगवान शिव के 11 वें अवतार माने गए हैं। बल और पुरूषार्थ देने
वाला देवता किंतु भगवान श्री राम के परम सेवक और भक्त के रूप में जगत प्रसिद्ध और
पूजनीय हुए।

♨️विभीषण : लंकापति रावण के छोटे भाई जिसने रावण की अधर्मी नीतियों के विरोध में युद्ध
में धर्म और सत्य के पक्षधर श्री राम का साथ दिया।

♨️कृपाचार्य : परम तपस्वी ऋषि जो कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे।

♨️अश्वत्थामा : कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के सुपुत्र थे। जो परम तेजस्वी थे,
जिनके मस्तक पर मणी जड़ी हुई थी। शास्त्रों में अश्वत्थामा को अमर बताया गया है।

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