महर्षी कश्यप

आंध्र प्रदेशातील कश्यप पुतळा

कश्यप हा वैदिक आणि हिंदू पौराणिक साहित्यात निर्देशिलेला एक सुविख्यात ऋषी होता. ब्रह्मदेवाच्या अष्टमानसपुत्रांपैकी एक असलेल्या मरीचि ऋषींचा तो पुत्र होता. 

(ऋषी मरीचि हे सप्तर्षिपैकी एक ऋषी मानले जातात आणि ब्रम्हदेवाचे मानस पुत्र आहेत. ऋषी कश्यप यांचे वडील आहेत.)

दक्ष प्रजापतीच्या तेरा कन्यांशी याचा विवाह झाला होता 

दक्ष प्रजापति क्यों नहीं चाहते थे कि सती का विवाह शिव से हो, पढ़िये 2 पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे, जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। दक्ष की ये सभी कन्याएं, देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं।
 पहली कथा
दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था। दक्ष की इन 27 कन्याओं में रोहिणी सबसे अधिक सुन्दर थीं। यही कारण था कि चंद्रदेव उसे ज्यादा प्यार करते थे और अन्य 26 पत्नियों की उपेक्षा हो जाती थी। यह बात जब राजा दक्ष को पता चली तो उन्होंने चंद्रदेव को आमंत्रित करके उन्हें विनम्रता पूर्वक इस अनुचित भेदभाव के प्रति चंद्रदेव को सर्तक किया। चंद्रदेव ने वचन दिया कि वो भविष्य में ऐसा भेदभाव नहीं करेंगे।
 परन्तु चंद्रदेव ने अपना भेदभावपूर्ण व्यव्हार जारी रखा। दक्ष की कन्याएं क्या करती, उन्होंने पुनः अपने पिता को इस संबंध में दुखी होकर बताया। इस बार दक्ष ने चंद्रलोक जाकर चंद्रदेव को समझाने का निर्णय लिया। दक्ष प्रजापति और चंद्रदेव की बात इतना बढ़ गयी कि अंत में क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रदेव को कुरूप होने का श्राप दे दिया।
श्राप के चलते दिन-प्रतिदिन चन्द्रमा की सुन्दरता और तेज घटने लगा। एक दिन नारद मुनि चन्द्रलोक पहुंचे तो चन्द्रमा ने उनसे इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। नारदमुनि ने चन्द्रमा से कहा कि वो श्राप मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें। चंद्रमा ने ऐसा ही किया और शिव ने उन्हें श्रापमुक्त कर दिया।
कुछ दिन बाद नारद मुनि घूमते हुए दक्ष के दरबार में पहुंचे और उन्होंने चंद्रमा की श्रापमुक्ति के बारे में उन्हें बताया। दक्ष को बड़ा क्रोध आया और वे शिव से युद्ध करने कैलाश पर्वत पहुंच गए। शिव और दक्ष का युद्ध होने लगा। इस युद्ध को रोकने के लिए ब्रह्मा और भगवान विष्णु वहां पहुंचे और दोनों को शांत कराया। 
 
दूसरी कथा
कहते हैं कि शिव को औघड़ जानकर दक्ष सती का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे अत: उन्होंने सती के स्वयंवर करने का निर्णय लिया। दक्ष ने सभी गंधर्व, यक्ष, देव को आमंत्रित किया, लेकिन शिव को नहीं। कहते हैं कि शिवजी का अपमान करने के लिए उन्होंने शिवजी की मूर्ति बनाकर द्वार के निकट लगा दी थी।
 स्वयंवर के समय जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने जाकर उसी शिवमूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। तभी शिवजी तत्क्षण वहीं प्रकट हो गए। भगवान शिव ने सती को पत्नी रूप में स्वीकार किया और कैलाशधाम चले गए। इस पर दक्ष बहुत कुपित हुए।
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राजा दक्ष और उनकी 84 कन्याएं-1

राजा दक्ष और उनकी 84 कन्याएं-1

भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष का पहला विवाह स्वायंभुव मनु की तृतीय पुत्री प्रसूति से हुआ। मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा के दक्षिणा अंगुष्ठ से प्रजापति दक्ष की उत्पत्ति हुई, लेकिन कल्पांतर में वही प्रचेता के पुत्र हुए। फिर उन्होंने उन्होंने प्रजापति वीरण की कन्या असिकी को पत्नी बनाया। असिकी को वीरणी भी कहा जाता है। 

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे, जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। दक्ष की ये सभी कन्याएं, देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं। 

*प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियां- श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शांति, सिद्धि, कीर्ति, ख्याति, सती, सम्भूति, स्मृति, प्रीति, क्षमा, सन्नति, अनुसूया, ऊर्जा, स्वाहा और स्वधा। 

पुत्रियों के पति के नाम : पर्वत राजा दक्ष ने अपनी 13 पुत्रियों का विवाह धर्म से किया। ये 13 पुत्रियां हैं- श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शांति, सिद्धि और कीर्ति। 

इसके बाद ख्याति का विवाह महर्षि भृगु से, सती का विवाह रुद्र (शिव) से, सम्भूति का विवाह महर्षि मरीचि से, स्मृति का विवाह महर्षि अंगीरस से, प्रीति का विवाह महर्षि पुलत्स्य से, सन्नति का कृत से, अनुसूया का महर्षि अत्रि से, ऊर्जा का महर्षि वशिष्ठ से, स्वाहा का पितृस से हुआ। 

इसमें सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध रुद्र से विवाह किया था। रुद्र को ही शिव कहा जाता है और उन्हें ही शंकर। पार्वती-शंकर के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्र- गणेश, कार्तिकेय और पुत्री वनलता। 

भगवान शंकर से विवाद करके दक्ष ने उन्हें यज्ञ में भाग नहीं दिया। पिता के यज्ञ में रुद्र के भाग न देखकर सती ने योगाग्नि से शरीर छोड़ दिया। भगवान शंकर पत्नी के देहत्याग से रुष्ट हुए। उन्होंने वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने दक्ष का मस्तक दक्षिणाग्नि में हवन कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर तुष्ट होकर भगवान शंकर ने सद्योजात प्राणी के सिर से दक्ष को जीवन का वरदान दिया। बकरे का मस्तक तत्काल मिल सका। तबसे प्रजापति दक्ष 'अजमुख' हो गए। 
वीरणी की साठ पुत्रियां और उनके पति..
वीरणी से दक्ष की साठ पुत्रियां- मरुवती, वसु, जामी, लंबा, भानु, अरुंधती, संकल्प, महूर्त, संध्या, विश्वा, अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवषा, तामरा, सुरभि, सरमा, तिमि, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, सुन्रिता, पुष्य, अश्लेषा, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मुला, अषाढ़, अभिजीत, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, रेवती, अश्वयुज, भरणी, रति, स्वरूपा, भूता, स्वधा, अर्चि, दिशाना, विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी। 

पुत्रियों और उनके पति के नाम इस प्रकार हैं- *धर्म से वीरणी की 10 कन्याओं का विवाह हुआ- मरुवती, वसु, जामी, लंबा, भानु, अरुंधती, संकल्प, महूर्त, संध्या और विश्वा। 

* इसके अलावा महर्षि कश्यप से दक्ष ने अपनी 13 कन्याओं का विवाह किया- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्ठा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि। महर्षि कश्यप को विवाहित 13 कन्याओं से ही जगत के समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। वे लोकमाताएं कही जाती हैं। इन माताओं को ही जगत जननी कहा जाता है। 

अदिति से आदित्य (देवता), दिति से दैत्य, दनु से दानव, काष्ठा से अश्व आदि, अरिष्ठा से गंधर्व, सुरसा से राक्षस, इला से वृक्ष, मुनि से अप्सरागण, क्रोधवशा से सर्प, ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि, सुरभि से गौ और महिष, सरमा से श्वापद (हिंस्त्र पशु) और तिमि से यादोगण (जलजंतु) 

इसके अलावा चंद्रमा से 27 कन्याओं का विवाह किया- कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, सुन्रिता, पुष्य, अश्लेषा, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मुला, अषाढ़, अभिजीत, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, रेवती, अश्वयुज, भरणी। उक्त कन्याओं को नक्षत्र कन्याएं भी कहा जाता हैं। हालांकि अभिजीत को मिलाकर कुल 28 नक्षत्र माने गए हैं। उक्त नक्षत्रों के नाम इन कन्याओं के नाम पर ही रखे गए हैं। 

इसके अलावा बची 9 कन्याओं का विवाह- रति का कामदेव से, स्वरूपा का भूत से, स्वधा का अंगिरा प्रजापति से, अर्चि और दिशाना का कृशश्वा से, विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी का तार्क्ष्य कश्यप से। ...इनमें से विनीता से गरूड़ और अरुण, कद्रू से नाग, पतंगी से पतंग और यामिनी से शलभ उत्पन्न हुए। 

दक्ष के पुत्रों की दास्तान : सर्वप्रथम उन्होंने अरिष्ठा से दस सहस्र हर्यश्व नामक पुत्र उत्पन्न किए थे। ये सब समान स्वभाव के थे। पिता की आज्ञा से ये सृष्टि के निमित्त तप में प्रवृत्त हुए, परंतु देवर्षि नारद ने उपदेश देकर उन्हें विरक्त बना दिया। विरक्त होने के कारण उन्होंने कोई विवाह नहीं किया। वे सभी ब्रह्मचारी रहे। 

दूसरी बार दक्ष ने एक सहस्र शबलाश्व (सरलाश्व) नामक पुत्र उत्पन्न किए। ये भी देवर्षि के उपदेश से यति हो गए। दक्ष को क्रोध आया और उन्होंने देवर्षि को शाप दे दिया- 'तुम दो घड़ी से अधिक कहीं स्थिर न रह सकोगे।' 

- संदर्भ ग्रंथ : पुराण

दक्ष प्रजापतिप्रजोत्पत्ती करणारा प्राचीन ऋषी. कश्यप, मरीची, अत्री, भृगू, क्रतू इ. ऋषींप्रमाणे दक्ष हाही एक प्रजापती आहे. याशिवाय त्याचा उल्लेख विश्वेदेव, आदित्य व मनू असाही केला जातो. प्रत्येक युगाचे स्वतंत्र मनू व स्वतंत्र दक्ष मानलेले आहेत.

दक्ष अदितीपासून जन्मला व अदितीचा जन्म दक्षापासून झाला असे ऋग्वेदात (१०·७२·५) म्हटले आहे. ‘या देवांच्या कथा आहेत’, असे म्हणून यास्काचार्यांनी या विरोधाचा परिहार केलेला आहे (निरुक्त  ११·२३).

दक्षाची उत्पत्ती ब्रह्मदेवाच्या अंगठ्यापासून झाली, असे विष्णुपुराणात (१·१५) म्हटले आहे तथापि त्याच्या जन्मासंबंधी भिन्न भिन्न प्रकारच्या कथा पुराणांत आढळतात.

 दक्ष हा प्राचेतसाचा मुलगा असून त्याने आपल्या मनापासून सृष्टी उत्पन्न केली (भागवत  ६·४ – ६). 

दक्षाला अनेक मुली झाल्या आणि निरनिराळ्या देवांशी व ऋषींशी त्यांचे विवाह झाले. त्यांच्यापासून पुढे प्रजा निर्माण झाली. 

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सत्तावीस दक्षकन्यांनी चक्राबरोबर विवाह केला. त्यांतील रोहिणीवरच तो अधिक आसक्त असल्याने, दक्षाने त्याला क्षयी होशील असा शाप दिल्याची कथा महाभारतात (शल्यपर्व ३५) आढळते.

🔴दक्षकन्या सतीचा विवाह शिवाबरोबर झाला. 

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यज्ञ में अपना पूजन न होने पर भगवान शंकर एक बार भयंकर भड़के थे और दक्ष प्रजापति का अश्वमेध यज्ञ नष्ट करवा दिया था.

कहानी यहां से शुरू है. दक्ष प्रजापति के यज्ञ के लिए भगवान विष्णु समेत सब देवता और महर्षि पृथ्वी लोक पहुंचे. तब पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि क्या प्रॉब्लम है कि सब देवता यज्ञों में जाते हैं पर आप नहीं जाते?

शिव ने जवाब दिया कि ये देवताओं के बनाए नियम हैं. उन्होंने किसी यज्ञ में मेरा भाग नहीं रखा है. पहले से यही रास्ता चल रहा है तो हमें भी इस पर ही चलना चाहिए.

यह सुनकर पार्वती दुखी हो गईं. बोलीं कि आप इन सबमें श्रेष्ठ हो, फिर भी आपको कोई याद नहीं करता. यह सुनकर भगवान शिव का ‘ईगो हर्ट’ हो गया. बोले कि मैं ही यज्ञ का स्वामी हूं और सब लोग मेरी ही स्तुति करते हैं. अपने क्रोध से उन्होंने एक महाभूत प्रकट किया, उसका नाम था वीरभद्र. उन्होंने वीरभद्र को आदेश दिया कि जाओ दक्ष के यज्ञ का विनाश करो.

वीरभद्र ने पार्वती के क्रोध से उत्पन्न भद्रकाली को भी साथ लिया और चल पड़ा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में. वहां पहुंचकर वीरभद्र ने अपने रोओं से हजारों रुद्रगण पैदा किए. उन्होंने यज्ञ में तबाही मचा दी. कोई तोड़फोड़ में जुट गया और किसी ने ब्रह्ममंडप में आग लगा दी. तब इंद्र और बाकी देवता लाइन लेंथ में आए और हाथ जोड़कर बोले कि महाराज आप कौन हैं?

वीरभद्र बोले- न देवता हूं, न दैत्य हूं. कौतुहल से भी नहीं आया और लंच करने भी नहीं आया. मैं तो शिव-पार्वती की आज्ञा से आया हूं. तुम लोग उन्हीं की शरण में जाओ.

तब प्रजापति दक्ष ने मन ही मन भगवान शिव का स्मरण किया. शिव प्रकट हुए और बोले- बताओ तुम्हारा क्या काम करूं? दक्ष ने रिक्वेस्ट की कि जो भी खाने-पीने की चीजें और यज्ञ का सामान तबाह हुआ, वह बहुत मेहनत से जुटाया गया था. बस आपकी कृपा से वह सब खराब न जाए.

भगवान शिव ने ‘तथास्तु’ कहा और प्रजापति दक्ष ने जमीन पर घुटने टेककर शिव की स्तुति शुरू कर दी.

(ब्रह्मपुराण, गीता प्रेस, पेज 87, 88, 89)

प्रजापति दक्ष महाभारत के अनुसार जिसकी उत्पत्ति ब्रह्माके अंगूठे से हुई थी। उसी अंगूठे से यज्ञ-पत्नी भी पैदा हुई। दक्ष की गणना उन प्रजातियों में होती है, जिनमें देवता उत्पन्न हुए थे। दक्ष, आदित्यवर्ग के देवताओं में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि अदिति ने दक्ष को तथा दक्ष ने अदिति को जन्म दिया। यहाँ अदिति सृष्टि के स्त्रीतत्त्व एवं दक्ष पुरुषतत्त्व का प्रतीक दिया है। दक्ष को बलशाली, बुद्धिशाली, अन्तर्दृष्टि-युक्त एवं इच्छाशक्ति सम्पन्न कहा गया है। उसकी तुलना वरुण के उत्पादनकार्य, शक्ति एवं कला से हो सकती है। स्कन्द पुराण में दक्ष प्रजापति की विस्तुत पौराणिक कथा दी हुई है। दक्ष की पुत्री सती शिव से ब्याही गयी थी। दक्ष ने एक यज्ञ किया, जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहाँ गयी और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया। इस घटना से कुद्ध हो-कर शिव ने अपने गणों को भेजा जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ विविध तीर्थ बन गये।[1]

पौराणिक उल्लेख

दक्ष एक सृष्टि निर्माणकर्ता देवता एवं ऋषि थे। ऋग्वेद में, सृष्टि की उत्पत्ति भू, वृक्ष, आशा, अदिति, दक्श, अदिति इस क्रम से हुई।[2] अदिति से दक्ष उत्पन्न हुआ एवं दक्ष से अदिति उत्पन्न हुई, यों परस्पर विरोधी निर्देश ऋग्वेद में है। इस विरोध परिहार, ‘ये सारी देवों की कथा हैं (देवधर्म), यों कह कर निरुक्त में किया गया है[3]। पुराणों में दी गयी ‘दक्षकथा’ का उद्भम उपरिनिर्दिष्ट ऋग्वेदीय कथा से ही हुआ है। पुराणों में, दक्ष प्रजापति ब्रह्मदेव के दक्षिण अंगूठे से उत्पन्न हुआ।[4] स्वायंभुव मन्वंतर में यह पैदा हुआ था। स्वायंभुव मनु की कन्या प्रसूति इसकी पत्नी थी। इससे दक्ष को सोलह कन्याएँ हुई। उनमें से श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, तथा मूर्ति ये तेरह कन्याएँ इसने प्रजापति को भार्यारूप में दी। स्वाहा अग्नि को, स्वधा अग्निष्वात्तों को तथा सोलहवी सती शंकर को दी गयीं।[5] ब्रह्मदेव के दाहिने अंगूठे से जन्मी हुई स्त्री दक्ष की पत्नी थी। उसे कुल 500 कन्याएँ हुई।[6]एक बार सृष्टि निर्माण करने वाले प्रजापति यज्ञ कर रहे थे। दक्ष प्रजापति वहाँ आया। उस समय शंकर तथा ब्रह्मदेव को छोड़, अन्य सब देव खड़े हो गये। इससे यह क्रोधित हुआ, एवं इसने शंकर को शाप दिया। नंदिकेश्वर ने भी इसे शाप दिया। दक्ष के शाप को अनुमति देने के कारण, ऋषियों को शाप मिला, ‘जन्म मरणों का दु:ख अनुभव करते हुए तुम्हें गृहस्थी के कष्ट उठाने पडेंगे’। इसी समय भृगु ऋषि ने भी शंकर के शिष्यों को दुर्धर शाप दिया।[7]इस प्रकार दक्ष तथा शंकर इन श्वसुर-दामाद में शत्रुत्व बढने लगा। ब्रह्मदेव ने दक्ष को प्रजापतियों के अध्यक्ष पद का अभिषेक किया। उससे गर्वांध होकर, शंकर आदि सब ब्रह्मनिष्ठों को निमंत्रित न करते हुए, यज्ञ प्रारंभ किया। प्रथम वाजपेय यज्ञ कर, बाद में बृहसप्तिसव प्रारंभ किया। इस यज्ञ में दक्ष ने सारे ब्रह्मर्षि देवर्षि तथा पितरों का उनकी पत्नियों सहित सम्मान किया एवं उन्हें दक्षिणा देकर संतुष्ट किया। दक्ष के घर में हो रहे यज्ञ की वार्ता, दक्षकन्या सती ने सुनी। तब वहाँ चलने की प्रार्थना उसने शंकर से की। किंतु उन्होंने वह प्रार्थना अमान्य की। मजबूरन सती को अकेले जाना पड़ा। इसके साथ नंदिकेश्वर, यक्ष, तथा शिवगण भी भेजे गये। यज्ञमंडप में माता तथा भगिनियों के सिवा, अन्यु किसी ने सती का स्वागत नहीं किया। स्वयं दक्ष ने उसका अनादर किया। इस कारण सती ने पिता की खूब निर्भत्सना की, तथा क्रोधवश वह स्वयं आग में दग्ध हो गयी। यह सब सुनकर, शंकर ने वीरभद्र का निर्माण किया एवं उसे दक्ष वध करने की आज्ञा दी। महाभारत के अनुसार, वीरभद्र शंकराज्ञा के अनुसार दक्ष यज्ञ में गया। उसने दक्ष से कहा कि मैं तुम्हारे यज्ञ का नाश करने आया हूँ। तत्काल दक्ष शंकर की शरण में आया। फिर भी उन्होंने दक्ष वध किया। दक्ष वध के बाद ब्रह्मदेव ने शंकर का स्तवन किया। तब दक्ष को बकरे का सिर लगा कर जीवित किया गया। तत्काल दक्ष ने शंकर से क्षमा माँगी।[8] वायु पुराण में दक्ष का अर्थ ‘प्राण’ दिया है। [9] दक्ष का यज्ञ दो बार हुआ। तथा ऋषि दो बार मारे गये। प्रथम यज्ञ, स्वायंभुव मन्वंतर में हुआ। दूसरा यज्ञ चाक्षुष मन्वंन्तर में संपन्न हुआ।[10][11]



ब्रह्मदेवाच्या एका यज्ञात शिवाने अपमान केला, म्हणून दक्षाने आपल्या बृहस्पतिसवनामक यज्ञात शिवाला आणि सतीला बोलावले नाही. इतर शिवगणासह सती एकटीच यज्ञमंडपात आली असताना तेथे तिचा अपमान झाला, म्हणून तिने यज्ञाग्नीत आत्महत्या केली. हे कळताच शिवाने आपल्या जटेपासून वीरभद्र व भद्रकाली यांना उत्पन्न केले आणि त्यांच्याकडून दक्षयज्ञाचा विध्वंस करून दक्षाचा वध करविला. 

🔴सर्व देव आणि ऋषी शिवाला शरण गेले. शिवाच्या कृपेने ब्रह्मदेवाने एक बोकडाचे मस्तक दक्षाच्या घडास जोडले व त्यास जिवंत केले (देवीभागवत – स्कंद 🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐🐐७ भागवतपुराण  ४·३).

दक्ष या नावाचा एक धर्मशास्त्रकारही आहे. त्याच्या नावावर दक्षस्मृति  नावाचा ग्रंथ आढळतो. ही स्मृती फार जुनी आहे. कारण याज्ञवल्क्यानेही दक्षाचा उल्लेख केला आहे.

दक्ष या नावाचा एक प्राचीन समाज होता व त्याचे राज्य वायव्येकडील वा उत्तरेकडील देशांत होते, असे पाणिनी सांगतो. पाणिनालाही दाक्षिपुत्र असे म्हणतात.

भिडे, वि. वि.

आणि त्यांच्यापासून देव, असुर, दानव, नाग, मानव यासारख्या सृष्टीतील सर्व व्यक्तिमात्रांची उत्पत्ती झाल्याची कथा ब्रह्माण्ड पुराणात व भागवत् पुराणात सापडते. कश्यप हा कश्यपवंशीय आणि कश्यपगोत्रीय ब्राह्मणांचा मूळपुरुष मानला जातो. कश्यप हा हिंदू पौराणिक कथांमध्ये उल्लेखलेल्या सप्तर्षींपैकी एक ऋषी होता.

अथर्ववेदाच्या मते 'कश्यप' या नावाचा अर्थ शब्दशः 'कासव' असा होतो. शतपथ ब्राह्मणात 'कूर्म' म्हणजेच 'कासव' या अर्थाने 'प्रजापति' अशा कश्यपाचा निर्देश आढळतो. या ब्राह्मणात, तसेच अथर्ववेद, सामवेद या उत्तरकालीन वैदिक साहित्यात कश्यपाचा 'प्रजापति', सृष्टीतील प्राणिमात्रांचा आद्य जनक मानले आहे.

कश्यपाविषयीचे वैदिक, पौराणिक उल्लेखसंपादन करा

उत्पत्तीसंपादन करा

महाभारतातील आदिपर्वानुसार कश्यप हा मरीचि ऋषीआणि कर्दमाची कन्या कला यांचा पुत्र होता. मरीचि ऋषी आणि कला यांच्या कश्यप व पूर्णिमा या दोन पुत्रांपैकी कश्यप थोरला होता. वायुपुराणात कश्यपाला ऊर्णा नामक सावत्र आईपासून झालेले अन्य सहा सावत्र भाऊ होते असा उल्लेख आहे. अग्निष्वात्त पितर हेदेखील त्याचे भाऊ होते. याखेरीज त्याला सुरूपा नावाची एक बहीण असून तिचा विवाह अंगिर‍स्‌ ऋषींशी झाला होता.

गरुड आणि अरुण यांची जन्मकथासंपादन करा

कश्यप पुत्रप्राप्तीसाठी यज्ञ केला, तेव्हा त्या यज्ञास देव, गंधर्व ऋषी यांनी साह्य केले. या कार्यात उत्साहाने साह्य करीत असलेल्या वाल्यखिल्य ऋषींचा इंद्राने उपमर्द केला. त्यामुळे वाल्यखिल्यांनी नवा इंद्र निर्माण करण्यासाठी तपश्चर्या आरंभली. तेव्हा इंद्र कश्यपाला शरण गेला. कश्यपाने वाल्यखिल्यांची समजूत घातली. कश्यपाच्या प्रयत्नांमुळे वाल्यखिल्यांचे मन वळले आणि त्यांनी नव्या इंद्राच्या निर्मितीसाठी जमवेलेले तपोबल कश्यपास दिले. त्या तपोबलामधून कश्यपपुत्र गरुड आणि अरुण यांची उत्पत्ती झाली.

सर्पसत्र शापामुळे दुःखसंपादन करा

अकरा रुद्रांची अवतारकथासंपादन करा

शिवपुराणाच्या शतरुद्रसंहितेत कश्यपाखातर शंकराने अकरा रुद्रावतार धारण केल्याची कथा आहे. देव-दैत्य युद्धात एकदा दैत्यांनी इंद्रादि देवांचा पराभव केला, तेव्हा सर्व देव कश्यपास शरण गेले. कश्यपाने देवांच्या संरक्षणार्थ शंकराची तपस्या केली. शंकरास प्रसन्न करून त्यांनी देवांना रक्षण करण्याची विनंती केली. तेव्हा शंकराने कश्यपाची पत्नी सुरभि हिच्या पोटी अकरा अवतार घेऊन दैत्यांचा संहार केला.

पद्म पुराणातील गंगावतरण आख्यायिकासंपादन करा

पद्म पुराणाच्या उत्तरखंडात गंगा नदी कश्यपामुळे भूतलावरील अवतरल्याची आख्यायिका दिली आहे. अर्बुद पर्वतावर कश्यप तपश्चर्या करत होते तेव्हा तेथील ऋषिवृंदाने त्यांना भूतलावर गंगा नदी आणण्याची विनंती केली. तेव्हा त्यांनी शिवाची आराधना करून गंगा पृथ्वीवर आणली. पृथ्वीवर गंगा जिथे अवतरली ते स्थान 'कश्यपतीर्थ' या नावाने ओळखले जाते. गंगेच्या अवतरणानंतर ते गंगेला स्वतःच्या आश्रमस्थानी घेऊन गेले. आश्रमाजवळील ते स्थान 'केशवरंध्रतीर्थ' या नावाने ओळखले जाते.
कश्यपाने गंगेला भूतलावर आणले म्हणून ती कश्यपाची कन्या आहे असे मानून तिला 'काश्यपी' हे नामाभिधान प्राप्त झाले. पुढील युगांत हीच नदी 'कृतवती', 'गिरिकर्णिका', 'चंदना', 'साभ्रमती' या नावांनी ओळखली जाऊ लागली.

पृथ्वीरक्षणसंपादन करा

पौराणिक साहित्यातील संवाद


परिवारसंपादन करा

कश्यपाने दक्ष प्राचेतस प्रजापतीच्या तेरा कन्यांशी विवाह केला होता. महाभारतानुसार त्यांची नावे अशी आहेत:
अदितिदितिदनुकालादनायुसिंहिकाक्रोधाप्राधाविश्वाविनताकपिलामुनिकद्रू

संदर्भसंपादन करा

  • 'भारतवर्षीय प्राचीन चरित्रकोश (खंड १) - डॉ. सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव - 'भारतीय चरित्रकोश मंडळ, पुणे ४'

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महाभारतात जेव्हा दुर्योधन आणि युधिष्टिर द्युत (जुगार) खेळत असतात तेव्हा शकुनी कवड्या (पासे) टाकतात. ते पासे बरोबर जेवढी संख्या पाहिजे तेवढीच संख्या का पाडायचे?