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राम जैन धर्म भगवान्

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  राम   जैन   धर्म   भगवान्  दशरथ इक्ष्वाकु वंश के राजा थे जिन्होंने अयोध्या पर शासन किया था। उनके चार राजकुमार थे, राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। जनक ने विदेह पर शासन किया। उनकी बेटी सीता का विवाह राम से हुआ था। रावण द्वारा सीता का अपहरण किया गया था, जो उसे अपने राज्य लंका ले गया था। सीता की खोज के दौरान, राम और लक्ष्मण सुग्रीव और हनुमान से मिलते हैं। सुग्रीव, वानर कबीले के राजा को अपने भाई वली (जो बाद में जैन भिक्षु बन गए और मोक्ष प्राप्त किया) द्वारा किष्किन्धा के सिंहासन से हटा दिया गया। राम और लक्ष्मण ने सुग्रीव को उसका राज्य वापस दिलाने में मदद की। उन्होंने सुग्रीव की सेना के साथ लंका की ओर कूच किया। विभीषण, रावण के भाई ने उसे सीता को वापस करने के लिए मनाने की कोशिश की। हालांकि, रावण सहमत नहीं हुआ। विभीषण ने राम के साथ गठबंधन किया। राम और रावण की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था। लक्ष्मण अंत में रावण को मारते हैं (रामायण से विचलित होकर जहां नायक राम रावण को मारता है) और विभीषण लंका का राजा बन जाता है। राम और लक्ष्मण अयोध्या लौट आते हैं...

ऐसे हुई कौरवों की उत्पत्ति

ऐसे हुई कौरवों की उत्पत्ति ♨️ धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे। उनमें दुर्योधन सबसे ज्येष्ठ था। 👉दुर्योधन का जन्म कैसे हुआ तथा 👉उसके शेष भाइयों का नाम क्या था? महाभारत के आदिपर्व में इस संदर्भ में विस्तृत उल्लेख मिलता है। ♨️धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दो वर्ष तक गर्भवती रही लेकिन संतान का जन्म न हुआ। भयभीत होकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान मांस-पिण्ड निकला।  ♨️यह बात जब महर्षि व्यास को पता चली  तो उन्होंने गांधारी से कहा कि  👉एक सौ एक कुण्ड बनवाकर  👉उन्हें घी से भर दो  👉तथा इस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़को। 👉जल छिड़कने पर उस  👉पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए।  व्यासजी की आज्ञानुसार गांधारीने प्रत्येक कुण्ड में मांस पिण्ड के टुकड़े डाल दिए। समय आने पर उन्हीं मांस-पिण्डों से पहले 👉दुर्योधन और बाद में  👉शेष पुत्र व  👉एक पुत्री का जन्म हुआ। 🔴धृतराष्ट्र के शेष पुत्रों के नाम  युयुस्तु, दु:शासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसंध, सम, सह, विंद, अनुविंद, दुद्र्धर्ष, सुबाहु, दुष्प्रधर्षण, दुर्मर्षण, दुर्मुख, द...

अष्ट चिरंजीवी इनसे मौत ने भी खाई मात

2010-12-05 05:03:11 (UTC) अष्ट चिरंजीवी इनसे मौत ने भी खाई मात सांसारिक जीवन का अटल सत्य है कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है। इसी कारण धार्मिक दृष्टि से इस संसार को मृत्युलोक भी कहा गया है। किंतु इस सच के विपरीत इसी संसार में ऐसे भी देहधारी है, जो युगों के बदलाव के बाद भी हजारों वर्षों से जीवित हैं। यह बात अविश्वसनीय है और अचंभित करने वाली भी। लेकिन हिन्दू धर्मशास्त्र ऐसे ही अमर आत्माओं के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं। धर्म की भाषा में इन महान और अमर आत्माओं को चिरंजीवी बताया गया है। इनकी संख्या आठ होने से यह अष्ट चिरंजीवी भी कहलाते हैं। पौराणिक और शास्त्रोक्त प्रसंग सिद्ध करते हैं कि इन अष्ट चिरंजीवियों ने अपने अद्भुत तपोबल, देव भक्ति और पुरूषार्थ से अमरत्व को प्राप्त किया। इनके आगे मौत भी नतमस्तक हो गई। जानते हैं ऐसी ही आठ कालविजयी आत्माओं के बारे में - ♨️ऋषि मार्कण्डेय : भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए। यह युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं। ♨️ वेद-व्यास : सनातन धर्म के प्राचीन चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्...

महाभारत से कर्म और लाइफ मैनेजमेंट के कुछ सूत्र सीख सकते हैं।

महाभारत से कर्म और लाइफ मैनेजमेंट के कुछ सूत्र सीख सकते हैं। आज हम महाभारत से कर्म और लाइफ मैनेजमेंट के कुछ सूत्र सीख सकते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण- महाभारत का सबसे बड़ा सूत्र है सकारात्मक दृष्टिकोण। जो भी हो रहा है उसमें सकारात्मक दृष्टि से देखें। उसमें अपने लिए कुछ नई संभावनाएं तलाशें। जब युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच राज्य का बंटवारा हुआ तो दुर्योधन को हस्तिनापुर का राज्य मिला और पांडवों को वीरान जंगल खांडवप्रस्थ, लेकिन पांडव दु:खी नहीं हुए उन्होंने भगवान कृष्ण की मदद से उसे इंद्रप्रस्थ बना दिया। - संयमित भाषा, महाभारत सिखाती है कि शत्रुओं से भी संयमित भाषा से बात करनी चाहिए। जिससे हमारे भावी संकट टल सकते हैं। इंद्रप्रस्थ में द्रोपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा कहकर मजाक उड़ाया और खुद अपमानित हुई। - शांति का रास्ता सबसे श्रेष्ठ होता है। महाभारत सिखाती है कि जीवन में सबसे मुश्किल से केवल शांति ही मिलती है। भगवान कृष्ण ने शांति के लिए मथुरा छोड़ द्वारिका बसाई। महाभारत युद्ध के पहले भी वे खुद शांति दूत बने थे। - आज के प्रतिस्पर्धा के दौर में सबसे कठिन है प्रतियोगिता में टिकना। भगवान कृष...

प्रभु श्रीराम की असली जन्म दिनांक

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प्रभु श्रीराम की असली जन्म दिनांक Webdunia भगवान राम का जन्म कब हुआ था? पुराण इस बारे में कुछ और कहते हैं जबकि रामायण पर आधारित शोधानुसार नई बात निकलकर सामने आई है। इस शोधानुसार 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दिन के 12.05 पर भगवान राम का जन्म हुआ था जबकि सैंकड़ों वर्षों से चैत्र मास (मार्च) की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता रहा है।  राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं।   हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 7323 ईसा पूर्व हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।    लेकिन असल में वैज्ञानिक शोधकर्ताओं अनुसार राम की जन्म दिनांक वाल्मीकि द्वारा बताए गए ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर अनुसार 4 दिसंबर 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9339 वर्ष पूर्व हुआ था।   वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 ...

गर्भ में जाने पूर्व श्री विष्णु ने ये कहा था और इस तरह जन्में थे श्रीकृष्ण

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Shri Krishna Janmashtami | गर्भ में जाने पूर्व श्री विष्णु ने ये कहा था और इस तरह जन्में थे श्रीकृष्ण > Share"> अनिरुद्ध जोशी मंगलवार, 11 अगस्त 2020 (10:10 IST) भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा के अत्याचारि राजा कंस के कारागार देवकी के गर्भ से भाद्र मास की कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात की बारह बजे जन्म लिया था। गर्भ में प्रवेश के दौरान भगवान विष्णु ने प्रकट होकर देवकी और वसुदेवजी को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन कराकर रहस्य की बातें बताई थीं।   कारागार में वसुदेव-देवकीजी के सामने जब श्रीभगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, हे माता आपके पुत्र रूप में मेरे प्रकट होने का समय आ गया है। तीन जन्म पूर्व जब मैंने आपके पुत्र रूप में प्रकट होने के वरदान दिया था।   तब श्रीकृष्ण भगवान वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और कहते हैं कि आप दोनों ने स्वायम्भुव मन्वन्तर में प्रजापति सुतपा और देवी वृष्णी के रूप में किस तरह मुझे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। फिर मैंने तीन बार तथास्तु कहा था इसलिए मैं आपके तीन जन्म में आपके पुत्र के रूप मे...

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा

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The story of Lord Krishna : भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा > Share"> भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। इसी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।    जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की जन्म संबंधी कथा भी सुनते-सुनाते हैं, जो इस प्रकार है-    'द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।  एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।    रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए...